सातवां वेतन आयोग : न्यूनतम वेतनमान और अलाउंसेस को लेकर हुई बैठक, मिले अच्छे संकेत
नई दिल्ली: केंद्रीय कर्मचारियों को नरेंद्र मोदी सरकार ने सातवें वेतन आयोग का तोहफा तय साल में ही दे दिया. जुलाई के अंतिम हफ्ते में कैबिनेट की बैठक में वेतन आयोग के प्रस्ताव को सरकार ने लगभग पूरी तरह स्वीकार कर लिया. 1 जनवरी 2016 से इस आयोग की रिपोर्ट को लागू करने की बात सरकार ने अपने कर्मचारियों से कही. इसके बाद कर्मचारियों के वेतन बढ़ने की प्रक्रिया शुरू हो गई.
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के साथ ही केंद्रीय कर्मचारियों के संगठनों ने न्यूनतम वेतनमान और फिटमेंट फॉर्मूला पर आपत्ति जताई और अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने की तारीख घोषित कर दी. सरकार ने कर्मचारी नेताओं से बातचीत कर चार महीने का समय मांगा और फिर दोनों पक्षों के बीच बातचीत का दौर शुरू हुआ.
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कर्मचारी नेताओं और सरकार के बीच हुई बातचीत में अलाउंस के मुद्दे पर कुछ प्रगति हुई है, लेकिन न्यूनतम वेतनमान का मुद्दा जस का तस बना हुआ है. सूत्र बता रहे हैं कि सरकार अलाउंसेस के मुद्दे पर कर्मचारियों की कुछ मांगों को मानने को तैयार हो गई है, लेकिन न्यूनतम वेतनमान में बढ़ोतरी की बात पर सरकार की ओर से अधिकृत अधिकारी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है.
सूत्र बता रहे हैं कि कर्मचारी नेताओं ने सरकार से सातवें वेतन आयोग द्वारा समाप्त किए गए तमाम अलाउंसेस में से कई को फिर चालू करने की मांग की है. सरकार कुछ अलाउंसेस को फिर चालू करने को तैयार भी हो गई है, लेकिन मामला कुछ ही आगे बढ़ा है. कर्मचारी नेताओं ने सरकार से मांग की है कि यह अलाउंस पिछले 100 सालों से भी ज्यादा समय से दिए जा रहे हैं और इन्हें एकाएक बंद करना ठीक नहीं है. उनका कहना है कि सरकार हर विभाग से इस बारे में राय ले. विभाग अपने कर्मचारी यूनियनों के साथ बैठक कर इस मामले पर कोई निर्णय लें.
इस बारे में एनडीटीवी ने जब ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन के सेक्रेटरी जनरल और कर्मचारी यूनियनों के संयुक्त संगठन एनजेसीए के संयोजक शिवगोपाल मिश्रा संपर्क किया तो उनका कहना था कि मीटिंग में अभी तक कुछ ठोस नहीं निकला है. अलांसेस पर मिश्रा ने बताया कि सरकार ने हमसे इस बारे में राय मांगी थी. हमने अपनी बात सरकार के समक्ष रख दी है. ऐसा लगता है कि सरकार कुछ मांगों के स्वीकार करने को तैयार है.
जहां तक न्यूनतम वेतनमान में वृद्धि की बात है कि इस मुद्दे पर सरकार और कर्मचारी नेताओं के बीच दो बार बैठक हो चुकी है. एक बैठक फॉर्मल थी यानि तय मुद्दा था और दूसरी बैठक में कर्मचारियों ने यह मुद्दा खुद ही उठाया था.
कर्मचारी संगठनों का कहना है कि वह अभी सरकार पर ज्यादा दबाव बनाने के पक्ष में नहीं हैं क्योंकि इस समय केंद्रीय कर्मचारियों के साथ देश का आम नागरिक नोटबंदी के कारण काफी दिक्कतों का सामना कर रहा है. उन्होंने सरकार का धन्यवाद भी दिया कि उन्होंने नोटबंदी से लाइन में लगे कर्मचारियों के हित में निर्णय लिया. इससे कर्मचारियों को काम करने में आ रही दिक्कतें कम होंगी और वे लाइन में लगे रहने के बजाय अपने काम को और बेहतर तरीके से अंजाम दे सकेंगे.
कई मुद्दों में एक मुद्दा डिसेबिलिटी पेंशन को लेकर भी उठा. अब सरकार की ओर जारी पत्र संख्या एफ.नं. ll/2/2016-जेसीए(पीटी) के जरिए कहा गया है कि सेना में डिसेबिलिटी पेंशन में बताई गईं अनोमली के लिए बैठक बुलाई गई है. यह बैठक 1 दिसंबर 2016 के लिए तय की गई है. इस बैठक की अध्यक्षता सचिव (पी) करेंगे. बैठक का समय 11 बजे निर्धारित किया गया है. यह मीटिंग नॉर्थ ब्लॉक में होगी.
हाल ही में कर्मचारी नेताओं ने वित्तमंत्री अरुण जेटली को चिट्ठी लिखकर अपनी बातें साफ तौर पर रख दी हैं. अपनी चिट्ठी में कर्मचारी नेताओं ने 30 जून 2016 को वित्तमंत्री अरुण जेटली से हुई बातचीत का हवाला भी दिया है. कर्मचारी नेताओं ने कहा है कि उस समय 11 जुलाई 2016 को प्रस्तावित कर्मचारियों की हड़ताल को टालने के लिए सरकार की ओर से यह प्रयास किया गया था.
इस दौरान वित्तमंत्री जेटली, गृहमंत्री राजनाथ सिंह, रेल मंत्री सुरेश प्रभु और केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा के साथ इस बैठक में कर्मचारी नेताओं ने साफ कहा था कि सातवें वेतन आयोग में न्यूनतम वेतनमान और फिटमेंट फॉर्मूले से कर्मचारी बुरी तरह आहत हैं.
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