Thursday, 6 April 2017

HRA क्लेम के लिए किराए की फर्जी रसीदें देते थे? इनकम टैक्स विभाग नहीं ‘बख्शेगा’: 10 खास बातें (English Version Included)

HRA क्लेम के लिए किराए की फर्जी रसीदें देते थे? इनकम टैक्स विभाग नहीं ‘बख्शेगा’: 10 खास बातें (English Version Included)

नई दिल्ली: नौकरीपेशा लोगों द्वारा हाउस रेंट अलाउंस (HRA) के दावे के लिए जमा करवा गईं रेंट रसीदों (किराए की रसीद) को लेकर इनकम टैक्स विभाग सख्त हो गया है. अब वह आपके द्वारा सब्मिट करवाई गई किराए की पर्चियों की अच्छी खासी पड़ताल करेगा. यानी, यदि आप फर्जी पर्चियां देकर एचआरए से टैक्स छूट लेते आए हैं तो अब आपके लिए मुश्किल होने वाली है.
इस पूरे मामले से जुड़ी 10 खास बातें आपको जान लेनी चाहिए
1) दरअसल, मुंबई इनकम टैक्स ट्रिब्यूनल ने एचआरए (HRA) डिडक्शन संबंधी एक दावे के मामले में संबंधित फैसला दिया है. इसके अनुसार, आकलन अधिकारी एचआरए डिडक्शन के लिए करदाता से किराए पर रहने संबंधी और पुख्ता सबूत मांग सकता है. एचआरए किसी भी एंप्लॉयी की सैलरी का बड़ा हिस्सा कवर करता है. नौकरीपेशा वे लोग जो किराए पर रहते हैं वे एचआरए के लिए दावा करते हैं और अपना टैक्स कानूनी रूप से बचाते हैं. दरअसल एक सीमा तक इस पर टैक्स छूट मिलती है. लेकिन यदि कोई व्यक्ति रेंट पर नहीं रहता है तो एचआरए पूरी तरह से कर योग्य हिस्सा होता है. यानी, इस पर टैक्स कटता है.
2) अशोक माहेश्वरी एंड असोसिएट्स एलएलपी में डायरेक्टर (टैक्स और नियामक) संदीप सहगल के मुताबिक, मुंबई ट्रिब्यूनल द्वारा यह साफ कर दिया गया कि एचआरए दावे के लिए केवल किराए की पर्चियां भर देना अब नाकाफी है और इसे पुख्ता और संपूर्ण दस्तावेज के दौर पर नहीं माना जाएगा. साथ ही टैक्स अधिकारी इस बाबत अन्य दस्तावेजों की मांग कर सकती हैं ताकि वे सुनिश्चित कर सकें कि दावा सही है.
3) उन्होंने बताया कि एचआरए नौकरीपेशा वर्ग के लिए टैक्स सेविंग के मोर्चे पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. अब इस फैसले से ऐसे कर्मियों को अपने दावों को न्यायसंगत साबित करने के लिए दबाव पड़ेगा. साथ ही नियोक्ता पर भी दबाव बनेगा कि एचआरए दावे के लिए दिए गए सबूतों के आधार पर टीडीएस काटने से पूर्व वह अधिकाधिक पड़ताल करेंगे.
4) ट्रिब्यूनल का कहना है कि आकलन अधिकारी लीव एंड लाइसेंस अग्रीमेंट, सोसायटी को दिया वह लेटर जोकि पजेशन के बाबत सूचना देता है, बैंक द्वारा की गई पेमेंट, ज्ञात स्रोतों से नकद पेमेंट, बिजली बिल की रसीदें (चेक द्वारा), पानी का बिल (चेक द्वारा) किराएदार से मांग सकता है.
5) इनकम टैक्स एक्ट की धारा सेक्शन 10 (13ए) के तहत नीचे दिए गए विकल्पों में से जो भी व्यक्ति के मामले में सबसे कम हो, उसके आधार पर एचआरए से टैक्स कटेगा : A- नियोक्ता की ओर से प्राप्त हुई वास्तविक एचआरए बेसिक सैलरी + डीए का 50 फीसदी उन लोगों के लिए जो मेट्रो शहरों में रह रहे हैं. B-जो लोग नॉन-मेट्रो शहरों में रह रहे हैं, उनके लिए 40 फीसदी. C- चुकाया गया किराया जोकि सैलरी के 10 फीसदी से कम हो.
6) पिछले साल आईटी विभाग ने 12बीबी फॉर्म- नया फॉर्म- पेश किया था. यह एचआरए ही नहीं टैक्स छूट के अन्य दावों के लिए भी है. इसी फॉर्म के जरिए कर्मियों को अपने दावों और टैक्स छूट प्राप्ति के लिए निवेश संबंधी जानकारी देनी होती है. निवेश संबंधी जानकारी देकर टैक्स छूट लेना कुछ नया नहीं है. लेकिन पहले इसके लिए कोई स्टैंडर्ड फॉरमेट नहीं होता था.
7) टैक्स मामलों के जानकार मानते हैं कि स्टैंडर्ड फॉरमेट होने से नियोक्ता और कर्मी दोनों के बीच अच्छा तालमेल इस बाबत बना रहेगा.
8) अगर आप अपने माता-पिता के घर में रहने के लिए किराया देते हैं, तब भी आप एचआरए छूट का दावा कर सकते हैं. हालांकि इसके लिए वह मकान आपके परिजनों के नाम पर ही होनी चाहिए और उन्हें इससे मिलने वाले किराये को अपनी आय में दिखाना होगी.
9) बता दें कि एचआरए क्लेम यदि एक आकलन वर्ष में 1 लाख रुपये से ज्यादा है तो इसके लिए दस्तावेज देने होते हैं. जो डीटेल देनी होती है, उसमें दावा करने वाले को मकान मालिक का नाम, पता, पैन नंबर देना होता है.
10) टैक्स अधिकारी मकान मालिक के पैन (PAN) को वेरिफाई करती हैं, यदि आपने यह सब्मिट करवाया हो. वह वेरिफाई करती हैं कि आपके द्वारा बताया गया अमाउंट (किराया) उस व्यक्ति (आपका मकान मालिक) द्वारा रिसीव किया गया या नहीं और उस पर जितना टैक्स बनता है, वह उसने दिया कि नहीं.

English Version

For as long as anyone can remember, producing fake property rent receipt, often from parents and relatives, has been an easy way to lower tax burden. Such cavalier disregard for tax rule was overlooked by most employers as well as taxman, who possibly felt it was a minor transgression. Perhaps, not anymore.
The income tax department now has good reason to insist on proof from the tax payer showing that he is indeed a genuine tenant, staying in the property in question.
A salaried employee receiving ‘house rent allowance’ (HRA) from the employer could escape paying tax on at least 60% of this amount by generating sham rent receipt.
However, according to a recent tribunal ruling, the assessing officer can now demand proof — such as leave and licence agreement, letter to the housing co-operative society informing about the tenancy, electricity bill, water bill etc. — in allowing a lower taxable income as computed by a salaried employee.
“The ITAT (Income Tax Appellate Tribunal) ruling has now laid down the criteria for the assessing officer to consider the claim of a salaried employee and if necessary question its justification. This will put the onus on the salaried class to follow the rules in availing the tax rebate,” said Dilip Lakhani, senior tax advisor, Deloitte Haskins & Sells LLP.
Understandably, none of the required documents are available with salaried employees submitting fake rent receipts. There may not be any actual rent outflow from the person as he may be staying in his family home and collecting a receipt signed by his father. Even if a person is a genuine tenant, the amount mentioned in the receipt may be more than what’s paid. This will not pose a problem if the person receiving the rent is outside the tax net. There are several instances where a person may be staying separately but claiming to pay rent to a relative owning another property in the same city; or, one of member of the family claiming a loan repayment deduction while another submitting a false rent receipt to evade tax.
Given the widespread practice of paying tax on only a small slice of HRA, it’s unclear how far tax officials would go in questioning such claims and pinning down salaried employees.
However, ITAT Mumbai’s decision to strike down the HRA exemption claim of a salaried individual for rent paid to her mother could set a precedent. “Technology and stricter reporting system may make it easier for the (income tax) department. For instance, there was a time when many never bothered to pay tax on interest earned from bank fixed deposits.
Today, it’s almost impossible. In case of HRA exemption, the assessing officer may crosscheck whether the address mentioned in the ITR form is the same as the property on which rent is paid,” said a tax officer.
The Tribunal ruling comes a few months after the government’s decision to cap the loss on property bought with borrowed money. Till now, a person paying an interest of, say, Rs 3 lakh on a loan (he took to buy the property) and earning Rs 1.2 lakh as rent could show the difference of Rs 1.8 lakh as ‘loss’ and set it off against salary income to pay lower tax.
In the last Union budget it was laid down that such losses for an individual tax payer cannot exceed Rs 2 lakh.
Source: ET


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